فصل فی موجبات سجود السهو وکیفیته وأحکامه
[۲۱۰۲] مسألة ۱ : یجب سجود السهو لأمور :
الاول : الکلام (۱۰۰۱) سهوا بغیر قرآن ودعاء وذکر، ویتحقق (۱۰۰۲) بحرفین أو حرف واحد مفهم فی أی لغة کان، ولو تکلم جاهلا بکونه کلاما بل بتخیل أنه قرآن أو ذکر أو دعاء لم یوجب سجدة السهو لأنه لیس بسهو، ولو تکلم عامدا بزعم أنه خارج عن الصلاة یکون موجبا، لأنه باعتبار السهو عن کونه فی الصلاة یعد سهوا، وأما سبق اللسان فلا یعد سهوا (۱۰۰۳)، وأما الحرف الخارج من التنحنح والتأوه والانین الذی عمده لا یضر (۱۰۰۴) فسهوه أیضاً لا یـوجب السجود.
الثانی : السلام فی غیر موقعه ساهیا (۱۰۰۵) سواء کان بقصد الخروج کما إذا سلم بتخیل تمامیة صلاته أو لا بقصده، والمدار علی إحدی الصیغتین الأخیرتین، وأما «السلام علیک أیها النبی..» الخ، فلا یوجب شیئا من حیث أنه سلام، نعم یوجبه (۱۰۰۶) من حیث أنه زیادة سهویة کما أن بعض إحدی الصیغتین کذلک، وإن کان یمکن دعوی إیجاب لفظ «السلام» للصدق، بل قیل : إن حرفین منه موجب (۱۰۰۷) ؛ لکنه مشکل إلا من حیث الزیادة.
الثالث : نسیان السجدة الواحدة (۱۰۰۸) إذا فات محل تدارکها کما إذا لم یتذکر إلا بعد الرکوع أو بعد السلام (۱۰۰۹)، وأما نسیان الذکر فیها أو بعض واجباتها الآخر ما عدا وضع الجبهة فلا یوجب إلا من حیث وجوبه لکل نقیصة.
الرابع : نسیان التشهد مع فوت محل تدارکه والظاهر أن نسیان بعض أجزائه أیضاً کذلک (۱۰۱۰) کما أنه موجب للقضاء أیضاً کما مر.
الخامس : الشک بین الأربع والخمس بعد إکمال السجدتین کما مر سابقا.
السادس : للقیام (۱۰۱۱) فی موضع القعود أو العکس، بل لکل زیادة ونقیصة لم یذکرها فی محل التدارک، وأما النقیصة مع التدارک فلاتوجب، والزیادة أعم من أن تکون من الاجزاء الواجبة أو المستحبة کما إذا قنت فی الرکعة الأولی مثلا أو فی غیر محله من الثانیة ومثل قوله : «بحول الله» فی غیر محله، لا مثل التکبیر أو التسبیح إلا إذا صدق علیه الزیادة کما إذا کبر بقصد تکبیر الرکوع فی غیر محله فإن الظاهر صدق الزیادة علیه، کما أن قوله : «سمع الله لمن حمده» کذلک، والحاصل أن المدار علی صدق الزیادة، و أما نقیصة المستحبات فلا توجب حتی مثل القنوت، وإن کان الأحوط عدم الترک فی مثله إذا کان من عادته الإتیان به دائما، والأحوط عدم ترکه فی الشک فی الزیادة أو النقیصة (۱۰۱۲) .
[۲۱۰۳] مسألة ۲ : یجب تکرره بتکرر الموجب سواء کان من نوع واحد أو أنواع، والکلام الواحد موجب واحد وإن طال، نعم إن تذکر ثم عاد تکرر، والصیغ الثلاث للسلام موجب واحد وإن کان الأحوط التعدد، ونقصان التسبیحات الأربع موجب واحد، بل وکذلک زیادتها وإن أتی بها ثلاث مرات.
[۲۱۰۴] مسألة ۳ : إذا سها عن سجدة واحدة من الرکعة الأولی مثلا وقام وقرأ الحمد والسورة وقنت وکبر للرکوع فتذکر قبل أن یدخل فی الرکوع وجب العود للتدارک، وعلیه سجود السهو ست مرات (۱۰۱۳) : مرة لقوله : بحول الله ومرة للقیام ومرة للحمد ومرة للسورة ومرة للقنوت ومرة لتکبیر الرکوع، وهکذا یتکرر خمس مرات لو ترک التشهد وقام وأتی بالتسبیحات والاستغفار بعدها وکبر للرکوع فتذکر.
[۲۱۰۵] مسألة ۴ : لا یجب فیه تعیین السبب ولو مع التعدد، کما أنه لا یجب الترتیب فیه بترتیب أسبابه علی الأقوی، أما بینه وبین الأجزاء المنسیة والرکعات الاحتیاطیة فهو مؤخر عنها کما مر.
[۲۱۰۶] مسألة ۵ : لو سجد للکلام فبان أن الموجب غیره فإن کان علی وجه التقیید وجبت الاعادة (۱۰۱۴)، وإن کان من باب الاشتباه فی التطبیق أجزأ.
[۲۱۰۷] مسألة ۶ : یجب الإتیان به فورا فإن أخر عمدا عصی ولم یسقط(۱۰۱۵) بل وجبت المبادرة إلیه، وهکذا، ولو نسیه أتی به إذا تذکر وإن مضت أیام ولا یجب إعادة الصلاة بل لو ترکه أصلاً لم تبطل علی الأقوی.
[۲۱۰۸] مسألة ۷ : کیفیته أن ینوی ویضع جبهته علی الأرض أو غیرها مما یصح السجود علیه (۱۰۱۶) ویقول (۱۰۱۷) : «بسم الله وبالله وصلی الله علی محمد وآله» (۱۰۱۸) أو یقول : «بسم الله وبالله، اللهم صل علی محمد وآل محمد» أو یقول: «بسم الله وبالله السلام علیک أیها النبی ورحمة الله وبرکاته» ثم یرفع رأسه ویسجد مرة أخری ویقول ما ذکر ویتشهد ویسلم، ویکفی تسلیمه «السلام علیکم» وأما التشهد فمخیر بین التشهد المتعارف والتشهد الخفیف وهو قوله : «أشهد أن لا إله إلا الله، أشهد أن محمدا رسول الله، اللهم صل علی محمد وآل محمد» والأحوط (۱۰۱۹) الاقتصار علی الخفیف کما أن فی تشهد الصلاة أیضاً مخیر بین القسمین لکن الأحوط هناک التشهد المتعارف کما مر سابقاً، ولا یجب التکبیر للسجود وإن کان أحوط، کما أن الأحوط مراعاة جمیع ما یعتبر فی سجود الصلاة فیه من الطهارة من الحدث والخبث والستر والاستقبال وغیرها من الشرائط والموانع التی للصلاة کالکلام والضحک فی الأثناء وغیرها فضلا عما یجب فی خصوص السجود من الطمأنینة ووضع سائر المساجد ووضع الجبهة علی ما یصح السجود علیه والانتصاب مطمئنا بینهما، وإن کان فی وجوب ما عدا ما یتوقف علیه إسم السجود وتعدده نظر (۱۰۲۰) .
[۲۱۰۹] مسألة ۸ : لو شک فی تحقق موجبه وعدمه لم یجب علیه، نعم لو شک فی الزیادة أو النقیصة فالأحوط إتیانه کما مر (۱۰۲۱).
[۲۱۱۰] مسألة ۹ : لو شک فی إتیانه بعد العلم بوجوبه وجب وإن طالت المدة، نعم لا یبعد (۱۰۲۲) البناء علی إتیانه بعد خروج وقت الصلاة، وإن کان الأحوط عدم ترکه خارج الوقت أیضاً.
[۲۱۱۱] مسألة ۱۰ : لو اعتقد وجود الموجب ثم بعد السلام شک فیه لم یجب علیه.
[۲۱۱۲] مسألة ۱۱ : لو علم بوجود الموجب وشک فی الأقل والأکثر بنی علی الأقل.
[۲۱۱۳] مسألة ۱۲ : لو علم نسیان جزء وشک بعد السلام فی أنه هل تذکر قبل فوت محله وتدارکه أم لا فالأحوط (۱۰۲۳) إتیانه.
[۲۱۱۴] مسألة ۱۳ : إذا شک فی فعل من أفعاله فإن کان فی محله أتی به، وإن تجاوز لم یلتفت .
[۲۱۱۵] مسألة ۱۴ : إذا شک فی أنه سجد سجدتین أو واحدة بنی علی الأقل إلا إذا دخل فی التشهد، وکذا إذا شک فی أنه سجد سجدتین أو ثلاث سجدات، واما أن علم بأنه زاد سجدة وجب علیه الاعادة، کما أنه إذا علم أنه نقص واحدة أعاد (۱۰۲۴) ولو نسی ذکر السجود و تذکر بعد الرفع لا یبعد عدم وجوب الاعادة وإن کان أحوط.
(۱۰۰۱) (الکلام) : علی الاحوط.
(۱۰۰۲) (ویتحقق) مر الکلام فیما یتحقق به فی المبطلات.
(۱۰۰۳) (فلا یعد سهواً) : لا یخلو عن تأمل.
(۱۰۰۴) (الذی عمده لا یضر) : تقدم الاشکال فی التأوه والانین.
(۱۰۰۵) (السلام فی غیر موقعه ساهیاً) : علی الاحوط.
(۱۰۰۶) (نعم یوجبه) : بل لا یوجبه من هذه الحیثیة ایضاً علی الاظهر.
(۱۰۰۷) (موجب) : لا یترک الاحتیاط فیه من حیث الکلام.
(۱۰۰۸) (نسیان السجدة الواحدة) : علی الاحوط الاولی.
(۱۰۰۹) (أو بعد السلام) : تقدم الکلام فی نسیان السجدة الاخیرة.
(۱۰۱۰) (کذلک) : فیه إشکال بل منع، وقد مر عدم ایجابه القضاء.
(۱۰۱۱) (للقیام) : علی الاحوط الاولی فیه وفیما بعده.
(۱۰۱۲) (فی الزیادة أو النقیصة) : الاقوی عدم وجوبه للشک فی أحداهما ولا فیهما معاً ما لم یکن مقروناً بالعلم الاجمالی بوقوع احدهما مع کون الصلاة محکومة بالصحة فانه لا یترک الاحتیاط بالاتیان به فی هذه الصورة.
(۱۰۱۳) (ست مرات) : علی الاحوط الاولی فیه وفیما بعده.
(۱۰۱۴) (وجبت الاعادة) : الظاهر عدم وجوبها کما مر فی نظائر المقام.
(۱۰۱۵) (لم یسقط) : علی الاحوط.
(۱۰۱۶) (أو غیرها مما یصح السجود علیه) : علی الاحوط.
(۱۰۱۷) (ویقول) : لا یبعد عدم وجوب الذکر فیه وان کان الاحوط الاتیان باحدی الصیغ الثلاث ولا سیما الاخیرة.
(۱۰۱۸) (محمد وآله) : فی الروایة وآل محمد.
(۱۰۱۹) (والاحوط) : بل هو علی خلاف الاحتیاط وانما الاحتیاط فی الاقتصار علی التشهد المتعارف دون الطویل.
(۱۰۲۰) (نظر) : بل منع، نعم لا یترک الاحتیاط بوضع الجبهة علی ما یصح السجود علیه کما مر.
(۱۰۲۱) (کما مر) ومر الکلام فیه.
(۱۰۲۲) (نعم لا یبعد) : بل هو بعید، نعم اذا کان الشک بعد فوات المبادرة فوجوب الاتیان به مبنی علی الاحتیاط.
(۱۰۲۳) (فالاحوط) : الاولی.
(۱۰۲۴) (اعاد) : ان لم یمکن التدارک لتخلل الفصل الطویل وإلا لزمه ذلک.